बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

समय सपने देखने का


हम में से अधिकांश लोग प्रायः एकान्त में आत्म-निरीक्षण करते रहते हैं |इस समय हम बिलकुल अकेले रहना चाहते हैं और किसी प्रकार का व्यवधान पसंद नहीं करते हैं | प्रायः यह कार्य अर्धरात्रि के पश्चात अथवा भोर में किया जाता है|
        यह वो समय होता है जब हम अक्सर अपने बीते हुए कल का अवलोकन करते हैं तथा उसके आलोक में आने वाले कल की योजनायें बनाते हैं | एक अनदेखे और अनजाने भविष्य की मधुर कल्पनाओं के सागर में गोते लगाकर आनंदित होते हैं | इन कल्पनाओं में एक विशेष प्रकार का रस होता है जिसको सिर्फ वही समझ सकता है जो खुद भी ऐसी कल्पनायें करता हो |
        यह सपनों का संसार भी बड़ा निराला होता है | सपने देखना सभी को अच्छा लगता है | हम विभिन्न स्वप्न देखते रहते हैं | कुछ स्वप्न खुली आखों से देखे जाते हैं ,तो कुछ बंद आखों से | यह समय सपने भी दिखाता है और उन सपनों को हकीकत का जामा पहनाने के लिए ऊर्जा भी देता है |
        यह गलतियाँ स्वीकार करने का समय होता है | इस समय हम पूरे दिन की अपनी  सारी गलतियों को स्वीकार करते हैं | भले ही हम अपने आप को सार्वजनिक रूप से दोषी न ठहराएं परन्तु हमारी अंतरात्मा हमें इस बात का आभास कराती है कि हम कहाँ गलत थे | हम खुद को न्यायाधीश बनाकर खुद के ही दोषों का फैसला करते हैं |
         यह समय होता है आत्मावलोकन करने का | इस वक़्त हम स्वयं से संवाद करते हैं , स्वयं की उपस्थिति का अनुभव करते हैं , अपने गुण-दोष इत्यादि पर विचार करते हैं | अपनी कमजोरियों और ताकत का विश्लेषण करते हैं | कभी-कभी हम जीवन की निस्सारता के बारे में भी चिंतन करते हैं | तब हमें अपनी तुच्छता का अहसास होता है | परन्तु अगले दिन हम पुनः इन बातों को ऐसे भूल जाते हैं जैसे दुष्यंत शकुंतला को भूल गया था |
        और सबसे आवश्यक , यह वक्त संकल्प लेने का होता है | इस वक्त , जब चहुँ ओर नीरवता और निस्तब्धता का साम्राज्य होता है , हम स्वयं से वादे कर रहे होते हैं , कल के लिए खुद को तैयार कर रहे होते हैं | एक स्वर्णिम भविष्य की कामना करते हुये उसके लिए प्रयास करने का संकल्प लेते हैं | 
        मित्रों , मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि आप सभी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जो भी संकल्प लें , उनका पालन करें तथा परिवार , देश व समाज की उन्नति में सहभागी बनें |
       

मुझमें छुपा है कौन

ग़र ना चलो मिला कर ,ज़माने से हर कदम
हर एक कदम पे रास्ता,सुनसान दिखेगा ||
मंजिल नहीं पता , मुसाफिर है जिंदगी
कौन जाने किसको क्या , मुकाम मिलेगा ||
पूछो जो आईने से , मुझमें छुपा है कौन
अपना ही अक्स आपको , अनजान लगेगा ||
यह सोच लो कि, सब अपने ही लोग हैं
हर एक शख्स आपकी , पहचान का होगा||
जिंदगी तो है ख़्वाब, इसे टूटना ही है
फिर मौत का बुलावा , किसी शाम मिलेगा ||
मौका मिले कभी तो , औरों के लिए जीना
फिर देखो दिल को कितना , आराम मिलेगा ||