बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

मुझमें छुपा है कौन

ग़र ना चलो मिला कर ,ज़माने से हर कदम
हर एक कदम पे रास्ता,सुनसान दिखेगा ||
मंजिल नहीं पता , मुसाफिर है जिंदगी
कौन जाने किसको क्या , मुकाम मिलेगा ||
पूछो जो आईने से , मुझमें छुपा है कौन
अपना ही अक्स आपको , अनजान लगेगा ||
यह सोच लो कि, सब अपने ही लोग हैं
हर एक शख्स आपकी , पहचान का होगा||
जिंदगी तो है ख़्वाब, इसे टूटना ही है
फिर मौत का बुलावा , किसी शाम मिलेगा ||
मौका मिले कभी तो , औरों के लिए जीना
फिर देखो दिल को कितना , आराम मिलेगा ||

1 टिप्पणी:

vikas chaudhary ने कहा…

hiiii


acha hai ....likhte rho


with best regard
vikas chaudhary
("www.vks786.blogspot.com")