शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

लम्हों में गुजरता वक्त

कौन कहता कि सब किस्मत का खेल है
कभी ख़्वाब देखने की हिमाकत  तो करो |

वक्त है सारी दुनिया के लिये तुम्हारे पास
कभी खुद पर भी नजरें इनायत तो करो |

क्या बात है , जो  नाउम्मीद हुये बैठे हो
चराग उम्मीदों का , आज रोशन तो करो |

क्या हुआ ग़र आज मुफलिसी का दौर है
खुशहाली भी आएगी, जी-तोड़ के मेहनत तो करो |

ग़र रोक नहीं सकते तुम जाने वाले को
आने वालों का फिर आगे बढ़ स्वागत तो करो |

वक्त सालों में नहीं , लम्हों में गुजरता  है
अपने हर लम्हे की कद्र और इज्जत तो करो |

माज़ी में जीना छोड़ दो , हासिल कुछ नहीं होगा
मौजूदा हाल में जीने की , हिम्मत तो करो |

तुम्हारी हर एक साँस पर कर्ज है वतन का
मादरे - वतन से अपने , मुहब्बत तो करो |

सोमवार, 19 सितंबर 2011

इंटरनेट पर संस्कृत के साधन

कंप्यूटर के युग में 'संस्कृत भाषा' की महत्ता एक बार फिर से परिभाषित हो रही है । भाषा विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करने वाले विश्व के कई विशेषज्ञ देवभाषा संस्कृत का सम्मान विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषा के रूप में करते हैं । कंप्यूटर के संचालन के लिए संस्कृत सर्वश्रेठ भाषा है ये भी एक स्थापित तथ्य है । प्राचीनतम शास्त्रों और सिध्दातों की अभिव्यक्ति का माध्यम रही ये भाषा नई तकनीक और विज्ञान को भी एक नई दिशा देने में समर्थ हैं  |

ये  कुछ वेबसाइट और ब्लॉग पते हैं जहाँ पर संस्कृतप्रेमी अपने आप को संस्कृतमय कर सकते हैं




आशा  है , आपको मेरा प्रयास पसन्द आएगा |

शनिवार, 17 सितंबर 2011

रामप्रसाद बिस्मिल का अंतिम पत्र

शहीद होने से एक दिन पूर्व रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने एक मित्र को निम्न पत्र लिखा -

"19 तारीख को जो कुछ होगा मैं उसके लिए सहर्ष तैयार हूँ।
आत्मा अमर है जो मनुष्य की तरह वस्त्र धारण किया करती है।"

यदि देश के हित मरना पड़े, मुझको सहस्रो बार भी।
तो भी न मैं इस कष्ट को, निज ध्यान में लाऊं कभी।।
हे ईश! भारतवर्ष में, शतवार मेरा जन्म हो।
कारण सदा ही मृत्यु का, देशीय कारक कर्म हो।।

मरते हैं बिस्मिल, रोशन, लाहिड़ी, अशफाक अत्याचार से।
होंगे पैदा सैंकड़ों, उनके रूधिर की धार से।।
उनके प्रबल उद्योग से, उद्धार होगा देश का।
तब नाश होगा सर्वदा, दुख शोक के लव लेश का।।

सब से मेरा नमस्कार कहिए,

तुम्हारा

बिस्मिल"


रामप्रसाद बिस्मिल की शायरी, जो उन्होने कालकोठरी में लिखी और गाई थी,
उसका एकट-एक शब्द आज भी भारतीय जनमानस पर उतना ही असर रखता है जितना
उन दिनो रखता था। बिस्मिल की निम्न शायरी का हर शब्द अमर है:

सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना, बाजुए कातिल में है।।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है।।

और:

दिन खून के हमारे, यारो न भूल जाना
सूनी पड़ी कबर पे इक गुल खिलाते जाना।