गुरुवार, 19 जनवरी 2012

सूखे दरख़्त







जंगल अब कुछ बदल रहा है ,
अंदर ही अंदर कुछ चल रहा है ,
एक हिस्सा खुद को सहेज रहा है ,
परिवर्तन की बयार में संभल रहा है |
दूसरा हिस्सा हावी होने के लिए ,
आसमान को छूने के लिए
शिद्दत से मचल रहा है ||

एक हिस्सा है सूखे दरख्तों का ,
दूसरा उनके बाल-बच्चों का |
एक हिस्सा है पुराने , जीर्ण वृक्षों का ,
दूसरा उनसे पनपे नए पौधों का ||

सूखे दरख्त , नए वृक्षों के अनुसार
बोझ हैं , समस्या हैं , प्रगति में बाधक हैं |
रुढियों और परम्पराओं से चिपके हुए
ये प्रगति-मार्ग के अवरोधक हैं ||


नयी पौध इसी उधेड़बुन में परेशान है
कि इन सूखे दरख्तों की समस्या का क्या समाधान है |
नयी पौध में कुछ पौधे तो, अत्यधिक विद्वान हैं
उनके पास इस विकट समस्या का भी समाधान है ||

ये समाधान कुछ यूं है कि
इन्हें इनके हकों से वंचित कर दो , महरूम कर दो ,
सूखे तो हैं ही , झुलसने पर भी मजबूर कर दो ||

एक नई जगह बनाओ ,
बनाओ एक नई व्यवस्था ,
जहाँ सभी सूखे दरख्त ,
मिलकर रहें इकठ्ठा ||

हरियाली के बीच में से ,
इन ठूंठों को हटा दो ,
इन्हें मुख्यधारा से दूर ,
कहीं ठूँठघर में बसा दो ||

इन इरादों की भनक बुजुर्गों तक भी पहुंची
कुछ चिंतित हुए , कुछ विस्मित हुए ,
कुछ को लगा यह दोष है भाग्य का
तो कुछ परवरिश के तौर-तरीकों पर शंकित हुए ||

नयी पौध भूल गई है शायद ,
कभी इन सूखे दरख्तों में भी हरियाली थी |
भूल रहे हैं कि जिसकी वो शाख हैं
कभी उसमें भी हरे भरे पत्ते थे ,
जिंदगी की लाली थी ||

कभी उसकी छाँव में ही ,
इनका बचपन बीता था |
कभी उसी ने इनको अपने ,
स्नेह अश्रु से सींचा था ||

सर्दी , बारिश , आँधी आदि से
उसने ही इन्हें बचाया था ,
एक नन्हे से बीज को ,
एक विशाल वृक्ष बनाया था |
जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी
कैसे डटे रहें दृढ़ता से ,
ये भी उसने ही सिखलाया था ||

भूल रहे हैं कि उस सूखे दरख़्त की जड़ों में
आज भी कोई जिन्दा है |
शायद नयी पौध के वैचारिक पतन पर
खुद को दोषी मान कर
खुद पर ही शर्मिंदा है ||

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

धीरज रखो प्रिये

यूँ रूठो मत, तुम नाराज न हो !
छोड़ो खफ़गी, जरा सुन तो लो !!
मैं मारा-मारा फिरता हूँ, अफसरों की खुशामद करता हूँ !
करता हूँ मेहनत किसके लिये प्रिये, बोलो किसके लिये ?
तुम्हारे लिये, सिर्फ तुम्हारे लिये !!

मैं सम्पूर्ण तुम्हारा हूँ, यह घर-बार भी तो तुम्हारा है !
पहली तारीख के वेतन पर, पूरा अधिकार तुम्हारा है !!
तुम्ही स्वामिनी घर की हो, तुम जैसे चाहो खर्च करो !
कहाँ और किससे मिलता हूँ, चाहो तो पूरा सर्च करो !!
किसकी मजाल जो बोल सके, बंदा गुलाम तुम्हारा है !
पर अभी जरा सी तंगी है, थोड़ा सा धीरज रखो प्रिये !!

चुन्नू की फीस भी बाकी है, और मुन्नू को हो रही खांसी है !
चुन्नू की फीस भर लूँ पहले, मुन्नू की दवाई कर लूँ पहले !!
बाबूजी का जो चश्मा टूटा है, वो चश्मा भी तो बनवाना है !
अम्मा जी का सर दुखता है, उसका इलाज भी करवाना है !!
फिर तुम्हें बनारस की साड़ी दिलवाऊंगा, धीरज रखो प्रिये !
फिर तुम्हारे कंगन-झुमके भी बनवाऊंगा, धीरज रखो प्रिये !!

बरसात भी आने वाली है, और छत की हालत निराली है !
टपकती है हलकी बारिश में भी, शायद ये गिरने वाली है !!
इसकी मरम्मत करवा लूँ पहले, ये काम भी तो जरूरी है !
खिड़की के टूटे शीशे लगवा लूँ पहले, ये भी तो जरूरी है !!
मैं गर्व से कहता हूँ तुमको, वाह....ऐसी मेरी घरवाली है !
फिर तुम्हें सर से पाँव तक सजाऊँगा, धीरज रखो प्रिये !!