शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

धीरज रखो प्रिये

यूँ रूठो मत, तुम नाराज न हो !
छोड़ो खफ़गी, जरा सुन तो लो !!
मैं मारा-मारा फिरता हूँ, अफसरों की खुशामद करता हूँ !
करता हूँ मेहनत किसके लिये प्रिये, बोलो किसके लिये ?
तुम्हारे लिये, सिर्फ तुम्हारे लिये !!

मैं सम्पूर्ण तुम्हारा हूँ, यह घर-बार भी तो तुम्हारा है !
पहली तारीख के वेतन पर, पूरा अधिकार तुम्हारा है !!
तुम्ही स्वामिनी घर की हो, तुम जैसे चाहो खर्च करो !
कहाँ और किससे मिलता हूँ, चाहो तो पूरा सर्च करो !!
किसकी मजाल जो बोल सके, बंदा गुलाम तुम्हारा है !
पर अभी जरा सी तंगी है, थोड़ा सा धीरज रखो प्रिये !!

चुन्नू की फीस भी बाकी है, और मुन्नू को हो रही खांसी है !
चुन्नू की फीस भर लूँ पहले, मुन्नू की दवाई कर लूँ पहले !!
बाबूजी का जो चश्मा टूटा है, वो चश्मा भी तो बनवाना है !
अम्मा जी का सर दुखता है, उसका इलाज भी करवाना है !!
फिर तुम्हें बनारस की साड़ी दिलवाऊंगा, धीरज रखो प्रिये !
फिर तुम्हारे कंगन-झुमके भी बनवाऊंगा, धीरज रखो प्रिये !!

बरसात भी आने वाली है, और छत की हालत निराली है !
टपकती है हलकी बारिश में भी, शायद ये गिरने वाली है !!
इसकी मरम्मत करवा लूँ पहले, ये काम भी तो जरूरी है !
खिड़की के टूटे शीशे लगवा लूँ पहले, ये भी तो जरूरी है !!
मैं गर्व से कहता हूँ तुमको, वाह....ऐसी मेरी घरवाली है !
फिर तुम्हें सर से पाँव तक सजाऊँगा, धीरज रखो प्रिये !!

5 टिप्‍पणियां:

vikas chaudhary ने कहा…

gud way of success.....be contiiiiii

RAKESH PRAVEER ने कहा…

भाई मई आपके व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों से अवगत हुआ ... आपकी रचनाओं को पढ़ कर ऐसा लगा की आपने बिलकुल ठीक लिखा है की... मैं चिंगारी को कुचलने की जगह चिंगारी को हवा दे कर हर एक उस सामाजिक,पारिवारिक या व्यक्तिगत व्यवस्था में एक क्रांति लाने का विचारक हूँ जो दोगली विचाधाराओ पर आधारित है ... अपनी इस आग को बचाए रखें...जीवन वाकई बहुत छोटी होती है , इसके हर एक पल को खुल कर अभिव्यक्त करें...जी भर कर जिए...ब्लॉग और सृजनात्मक लेखन के लिए आपको ढेर सारी शुभकामनायें....RAKESH PRAVEER

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

vidya ने कहा…

बढ़िया सार्थक रचना...
बधाई...

विभूति" ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत
और कोमल भावो की अभिवयक्ति......