बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

Roy - Movie

'रॉय' फिल्म लेखकों को सताने वाली एक मानसिक स्थिति के ऊपर बनी है जिसे अंग्रेजी में "राइटर्स ब्लॉक " कहते हैं| इस स्थिति में लेखक को कुछ नहीं सूझता कि क्या लिखा जाये|
पर मजे की बात ये कि ये फिल्म हिंदी के क्रिटिक्स को ही नहीं समझ आ रही| इसको मिले ख़राब रिव्यू तो यही कह रहे हैं| फिल्म क्रिटिक्स को ये बात भी समझनी चाहिये कि कौन सी फिल्म किस तरह के दर्शक वर्ग के लिये है|
'रॉय', 'पीके', 'लंचबाक्स' और 'हैपी न्यू ईयर' चारो के दर्शक वर्ग अलग हैं और इनकी गुणवत्ता मापने का पैमाना भी एक नहीं हो सकता|
फिल्म की गुणवत्ता इस बात से मापी जानी चाहिये कि वो अपने दर्शक वर्ग का मनोरंजन करने में कितनी सफल रही| एक ही डंडे से हाँकेंगे तो अच्छी फिल्म को ख़राब और खराब फिल्म को अच्छी कह जायेंगे|
//फिल्म बोझिल है, रिलेक्स होकर देखने वालों की नहीं है| पूरा अटेंशन मांगती है|

सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

स्वागत स्वस्थ मनोरंजन का

मुझे टीवी सीरियल्स से चिढ़ है|
कारण- हद दर्जे की बनावट और नाटकीयता| घर का हर सदस्य एक दुसरे को मारने के षड्यंत्रों में लगा है, एक डायलोग के बाद पाँच लोगों के चेहरे पाँच बार दिखाए जायेंगे और बैकग्राउंड में इरिटेटिंग म्यूजिक, गरीबी की वजह से भूखों मरने की नौबत आने वाली है पर लाइफस्टाइल करोड़पति का और गहने और साड़ियाँ कहीं से भी गरीबी की गवाही नहीं देते
पर एक दिन गलती से एक सीरियल पर पाँच मिनट रुक गया और वाह, मजा आ गया| एक नया चैनल आया है 'जिंदगी'| पाकिस्तानी चैनल है शायद| सीरियल का नाम था "मौसम", पूरा एपिसोड देख गया| गूगल और यूट्यूब पर पहुंचा तो समझ में आया कि ये टीवी सीरियल्स का ही चैनल है और इसके सारे सीरियल बड़े ही सामान्य और प्यारे हैं| उनको जबरदस्ती खींचने के बजाय ४० - ५० एपिसोड में कहानी समाप्त करके नया सीरियल शुरू करते हैं|
दूरदर्शन के सुनहरे दौर की यादें ताजा हो गयीं| सीधी सपाट कहानी, जबरदस्ती का ड्रामा नहीं, हमारे समाज के बीच से लिये गये सामान्य किरदार, उनके रूमानी संवाद, बिना तड़क भड़क के घर और कपड़े| बिलकुल आम से लोगों की आम सी कहानी जिससे अपने आस पास को कनेक्ट किया जा सके|
शायद ये चैनल सास बहू और फ़ालतू के नौटंकी सीरियल्स के दौर से छुट्टी दिलाते हुये स्वस्थ मनोरंजन का एक नया दौर शुरू करे|
आमीन

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

वेलेंटाइन डे

अगर आप और आपका पार्टनर एक दूसरे को इतना समझते हैं जितना कोई और नहीं समझता, एक दूसरे की बातें अक्सर बिना कहे ही समझ लेते हैं, आपकी आँखें और आपका चेहरा ही आपकी जुबां हैं, फिर भी एक दूसरे की आवाज सुने बिना चैन नहीं पड़ता, हर हाल में एक दूसरे को खुश देखना चाहते हैं।
और हाँ, इतना सब कुछ होने के बाद भी तकरारें लगी रहतीं हैं। और एक दूसरे को मनाने में कभी ईगो बीच में नहीं आता।
तो आप का हर दिन वेलेंटाइन डे है। ये दिन भी आपका ही है। खुश रहिये और इन दिन का भी आनंद लीजिये।

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

खुश होना है तो कभी कभी बच्चे बन जाइये


कभी कभार ऐसा भी समय आता है जब हम बच्चे बन जाते हैं| समझना - बूझना बंद कर देते हैं, सारी "मैच्योरिटी" को एक कोने में डाल देते हैं| बस कोई मासूम सी जिद पकड़ कर बैठ जाते हैं| कहते हैं कि मुझे चाँद चाहिए| अब ये हम सुनना ही नहीं चाहते कि चाँद बहुत दूर है या चाँद को संभालना तुम्हारे बस की बात नहीं| अगर कोई समझाए भी तो ये समझ में नहीं आता|
हमें बस चाँद की खूबसूरती लुभाती है, उसकी चमक आँखों को सुहाती है| दिल और दिमाग अलग-२ दिशा में दौड़ने लगते हैं|
किसी शायर ने भी शायद ऐसे ही महसूस करके कहा है-
"दिल भी इक जिद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं"
खैर, क्या करे दिल भी आखिर क्यूंकि "दिल तो बच्चा है जी "