सोमवार, 16 मई 2011

एक सवाल आपसे


आज  कुछ तेज बह रही हैं हवायें,
शायद हमसे कुछ कह रही हैं हवायें|
ये कहती हैं कि मुझको बहने दो,
जैसी थी,वैसी ही रहने दो ||

मैंने कहा - "चुप कर , तुझे प्रतिरोध का अधिकार नहीं
यहाँ भ्रष्ट मानव समूह है, कोई देवताओं का दरबार नहीं|
हम मुखिया हैं मानव दल के , हमसे डरकर रहना होगा ,
हम जैसे कहें बहना होगा , सब जोर-जुल्म सहना होगा ||"

पर वह धृष्ट डपट कर बोली - "हे मानव, क्या कहता है,
मेरा स्वरुप विनष्ट करता है , मुझको ही चुप करता है |
मेरे मौन , सहनशीलता को , मेरी कमजोरी समझता है,
किसका घमंड हुआ तुझको , किस बात पे इतना गरजता है |
त्याग रही हूँ मौन आज से , आज से अब से चुप न रहूंगी ,
जिधर चाहूँगी उधर जाऊँगी , इधर उधर स्वच्छंद बहूँगी || "

अंत में एक सवाल आपसे , देखें आपका उत्तर क्या है,
किसे समर्थन आप करेंगे , देखें आपके अंदर क्या है  |
आओ साथ हवा का दें , आओ मिलकर आवाज उठायें ,
चोरों , भ्रष्टों , देशद्रोहियों को , हम सब मिलकर सबक सिखाएं ||