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शनिवार, 20 जून 2015

खुशियाँ बाँटें

शरद ऋतु की एक शाम। किशोरवय मंजरी अपने द्वार पर टहल रही थी। शाम की सुहानी हवा का आनंद लेते हुये उसे एक ख्याल आया। क्यों न वो अपने द्वार पर फूलों के पौधे लगा दे। जब वो खिलेंगे तो कितना सुन्दर हो जायेगा उसका द्वार।

लड़कियों में घर बार को सजा कर रखने की प्रवृत्ति बचपन से ही होती है। मंजरी में भी ये शौक भरपूर था। फिर क्या था। उसने ढेर सारे गेंदे के फूल लगा दिये अपने दरवाजे पर। उनको समय पर पानी देना, साफ़ सफाई और किसी प्रकार के नुकसान से उनकी सुरक्षा करने का काम मंजरी ने पूरी तन्मयता से किया। और एक दिन आया जब उसके दरवाजे पर फुलवारी लहलहा उठी। छोटे बड़े, हलके गाढ़े तमाम तरह के गेंदे के फूलों ने मंजरी के घर की खुबसूरती में चार चाँद लगा दिये।

उसी गाँव में एक माली रहता था। वो कभी कभार मंजरी के घर आया जाया करता था। इस बार जब वो आया और इतने सुन्दर फूलों की क्यारियाँ देखी तो पूछ बैठा कि क्या मैं इनमें से कुछ फूल तोड़ सकता हूँ? घर वालों ने कहा कि इन फूलों की मालिक तो मंजरी है। उसी ने बड़े शौक से इन्हें लगाया है और वही इनकी देखभाल करती है। बेहतर होगा कि तुम मंजरी से पूछ लो। माली ने बात समझ ली और मंजरी से फूलों को तोड़ने की अनुमति चाही। मंजरी ने अनुमति तो दे दी पर साथ में ये शर्त भी रखी कि चाहे जितने फूल तोड़ो पर हर पेड़ कर कुछ फूल बचे रहने चाहिये। फुलवारी की खूबसूरती नहीं जानी चाहिये। माली ने तुरंत हाँ कर दी।
 
उस दिन के बाद से माली रोज आता और फूल तोड़कर ले जाता। कई दिन बीतने के बाद एक दिन मंजरी ने माली से पूछा कि आखिर वो इन फूलों का करता क्या है। माली मुस्कुराया और बोला - 'जी, मैं तो माली हूँ। और क्या करूँगा। बाजार में बेच देता हूँ। सही कीमत मिल जाती है। कुछ पेट पालने का सहारा हो जाता है।'
'तो तुम खुद भी फूलों की खेती क्यों नहीं करते?' , मंजरी ने उत्सुकता से पूछा।
 
'कहाँ से करें बिटिया, हमार पास खेत ही कितने हैं। जो थोडा बहुत घर आँगन में जमीन है, उसमें फूल लगा रखे हैं पर उतने से गुजारा नहीं हो पाता।' माली ने लंबी सांस ली। ये सुनते ही मंजरी को एक विचार सूझा। उसने माली से कहा कि क्यों न तुम तरह तरह के फूलों के पौधे सारे गाँव वालों में मुफ़्त में बाँट दो। सबके पास जमीनें हैं। उन्हें तुम्हारे फूल लगा कर ख़ुशी होगी। फिर तुम जैसे मेरे फूल ले जाते हो वैसे ही उनसे भी पूछ लेना। मुझे तो लगता है कि कोई भी मना नहीं करेगा।
 
माली को ये विचार बहुत सुन्दर लगा। वो उत्साह से भर गया। उसने सारे गाँव वालों से बात की। सब ख़ुशी ख़ुशी तैयार हो गये। फिर क्या था, उसने सबको पौधे लाकर दिये और महीने भर के अंदर ही पूरा गाँव खुशबू से भर गया। जिधर भी नजर उठती एक से एक सुन्दर फूल खिले दिखते। माली के थोड़े से फूल ले लेने पर किसी को कोई आपत्ति न थी। सबके थोड़े थोड़े फूल मिलकर अब माली के पास इतने फूल आ जाते थे जिससे उसकी कमाई बढ़ गई और वो पहले से अधिक सुखी हो गया।

इस प्रकार मंजरी के प्रकृति प्रेम और सहज बुद्धि की वजह से पूरे गाँव में फुलवारियाँ खिल उठीं और माली की भी चिंता दूर हो गयी।

आपका शौक भी कल आपको आगे ले जा सकता है या किसी और को आगे बढ़ने में मदद कर सकता है इसलिये चिंगारी जलाये रखिये, शौक बनाये रखिये। सफलता मिलेगी, जरूर मिलेगी।
-- अवनीश कुमार

शुक्रवार, 13 मार्च 2015

ख़ुशी खरीदी जा सकती है


लोग कहते हैं कि पैसे से ख़ुशी नहीं खरीदी जा सकती| पर मुझे लगता है कि पैसे से ख़ुशी खरीदी जा सकती है, वो भी ढेर सारी ख़ुशी| बस इतना ध्यान देना है कि पैसा सही जगह और सही तरीके से खर्च हो, टाइमिंग का भी महत्त्व है|
जैसे किसी का जन्मदिन हो और आप उसके लिये सरप्राइज़ पार्टी रखें, उसको कोई उपहार दें| किसी को फोटोग्राफी में रूचि है, उसको कैमरा दे दें| कोई पढ़ने का शौकीन है, उसे उसकी रूचि की पुस्तक दे दें| किसी को कुछ सीखना है वो सिखा दें| अगर खुद नहीं सिखा सकते तो उचित व्यक्ति के पास भेजें| किसी से सीरियस बातें कर रहे हों और एकाएक चाकलेट खाने को दे दें|
फिर देखें, ख़ुशी कितनी आसानी से खरीदी जा सकती है|
ये बात मैंने Arun Mishra सर से सीखी है|

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

खुश होना है तो कभी कभी बच्चे बन जाइये


कभी कभार ऐसा भी समय आता है जब हम बच्चे बन जाते हैं| समझना - बूझना बंद कर देते हैं, सारी "मैच्योरिटी" को एक कोने में डाल देते हैं| बस कोई मासूम सी जिद पकड़ कर बैठ जाते हैं| कहते हैं कि मुझे चाँद चाहिए| अब ये हम सुनना ही नहीं चाहते कि चाँद बहुत दूर है या चाँद को संभालना तुम्हारे बस की बात नहीं| अगर कोई समझाए भी तो ये समझ में नहीं आता|
हमें बस चाँद की खूबसूरती लुभाती है, उसकी चमक आँखों को सुहाती है| दिल और दिमाग अलग-२ दिशा में दौड़ने लगते हैं|
किसी शायर ने भी शायद ऐसे ही महसूस करके कहा है-
"दिल भी इक जिद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं"
खैर, क्या करे दिल भी आखिर क्यूंकि "दिल तो बच्चा है जी "