गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

खुश होना है तो कभी कभी बच्चे बन जाइये


कभी कभार ऐसा भी समय आता है जब हम बच्चे बन जाते हैं| समझना - बूझना बंद कर देते हैं, सारी "मैच्योरिटी" को एक कोने में डाल देते हैं| बस कोई मासूम सी जिद पकड़ कर बैठ जाते हैं| कहते हैं कि मुझे चाँद चाहिए| अब ये हम सुनना ही नहीं चाहते कि चाँद बहुत दूर है या चाँद को संभालना तुम्हारे बस की बात नहीं| अगर कोई समझाए भी तो ये समझ में नहीं आता|
हमें बस चाँद की खूबसूरती लुभाती है, उसकी चमक आँखों को सुहाती है| दिल और दिमाग अलग-२ दिशा में दौड़ने लगते हैं|
किसी शायर ने भी शायद ऐसे ही महसूस करके कहा है-
"दिल भी इक जिद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं"
खैर, क्या करे दिल भी आखिर क्यूंकि "दिल तो बच्चा है जी "

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