सोचता हूँ नीरवता के साम्राज्य में
अंदर भेजूँ गुप्तचर कुछ शब्दों के
तेरी शान्त जिह्वा में कराऊँ कुछ कम्पन
हो उदगार जो अभी अर्द्ध उच्चारित हैं
पर हमारे बीच की ये नीरवता ही शायद नियति है
समानान्तर रेखाओं जैसे हमारे शब्द भी कभी नहीं मिलने
हमें चाहिए एक सेतु जो जोड़ दे
आपस मे समानान्तर रेखाओं के सिरे