गुरुवार, 18 अगस्त 2011

तेरा मन मेरा दर्पण है

कुछ ख्वाब ह्रदय में रहते हैं , कुछ आँखों में बस जाते हैं |
मेरी पलकों के साये में , ख्वाबों के चरागाँ रोशन हैं ||
सोचा था कि तुमसे बात करूँ , मैं अपने दिल का हाल कहूँ |
पर आज जो तुम मौजूद यहाँ , तो मेरे अधरों पर कंपन है ||
लब खुलते हैं कुछ कहने को , पर लफ्ज ही गुम हो जाते हैं |
तुम खुद से इसे समझ लेना , जो मेरे दिल की तड़पन है ||
जब काले घने अंधेरों में , मैं तनहा सा महसूस करूँ |
उस वक्त मुझे बहलाने को , तेरी यादों का दामन है ||
अभी मैं तुमसे दूर हूँ पर , मैं फिर भी तुमसे दूर नहीं |
मेरा मन तेरा दर्पण है , तेरा मन मेरा दर्पण है ||

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

bhut ache hai ye sach me bhut hi zayada..

virendra sharma ने कहा…

बेहद खूबसूरत स्थाई है /मतला है जो भी है अति सुन्दर है ,बहुत अच्छा लिख रहें हैं भैया ,आपका हिंदी अनुराग ही हमारा संबल है ..कुछ ख्वाब ह्रदय में रहते हैं , कुछ आँखों में बस जाते हैं |
मेरी पलकों के साये में , ख्वाबों के चरागाँ रोशन हैं ||जय अन्ना .जय श्री अन्ना .

बृहस्पतिवार, १८ अगस्त २०११
उनके एहंकार के गुब्बारे जनता के आकाश में ऊंचाई पकड़ते ही फट गए ...
http://veerubhai1947.blogspot.com/
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
Friday, August 19, 2011
संसद में चेहरा बनके आओ माइक बनके नहीं .

वाणी गीत ने कहा…

दूर हूँ फिर भी दूर नहीं ...
सुन्दर अभिव्यक्ति !