[ढ़ोला मारू के गीत - अशोक जमनानी जी की पुस्तक 'खम्मा' से साभार]
अकथ कहानी प्रेम की किणसूं कही न जाय
गूंगा को सुपना भया, सुमर-सुमर पछताय|
प्रेम की कहानी ऐसी, खुद प्रेम ऐसा कि वो ठीक से किसी से बताया न जाए| जैसे कोई गूंगा कभी सपना देख ले और अपना वो अनमोल सपना सबको बताना भी चाहे तो बता नहीं सकता क्योंकि वो तो बोल ही नहीं सकता| बस, मोहब्बत की कहानी भी ऐसी ही अकथ होती है| वो कही नहीं जा सकती| ढ़ोला-मारू का ब्याह तो बचपने में ही हो गया था| फिर दोनों अपने-अपने घरों को चले गए| पर जब मारू सयानी हुई तो ढ़ोला कि याद में, उसकी विरह में उसका दुख ऐसा पिघला कि जब-जब उसे ढ़ोला की याद आती तब-तब उसे ऐसा लगता कि मानो कोई तीर आकर उसे चुभ रहा हो| वो बस एक ही बात सोचती थी कि काश उसे पंख मिल जायें तो वो उड़कर अपने ढ़ोला के पास चली जाए|
जिमि जिमि सज्जण संभरई तिमि तिमि लग्गइ तीर
पंख हुवइ तो जाइ मिलि, मनां बंधाड़ां धीर
मारू अपने मन को दिलासा देती कि शायद उसे पंख मिल जायेंगे तो वो उड़कर अपने ढ़ोला के पास चली जायेगी| लेकिन प्रेमियों का मन तो हर पल बदलता रहता है| मारू एक पल तो खुद को दिलासा देती लेकिन फिर दूसरे ही पल खुद से कहती कि अगर भाग्य ही उल्टा है तो पंख मिलने से भी क्या होगा? वो कहती कि चकवी के भी तो पंख हैं लेकिन वो फिर भी रात में अपने पिया से नहीं मिल पाती|
पंखड़ियां ई किऊं नहीं, देव अवाडू ज्यांह
चकवी कइ हइ पंखड़ी, रवणि न मेलउं त्यांह
मारू सोचती है कि वो अपना संदेसा ही ढ़ोला तक पहुंचा दे क्योंकि संदेसे का मोल भी कम नहीं है| लेकिन वो सोचती है कि संदेसा ले जाने के लिए कोई ऐसा मिलना चाहिए जो उसका संदेसा सुनाते समय अपनी आँखों में उतना ही पानी भर सके जितना ढ़ोला की आंखों में है| अगर ऐसा संदेसा सुनाने वाला कोई मिल गया तो उसका संदेसा अनमोल हो जाएगा नहीं तो उसका कोई मोल ही नहीं होगा|
संदेसा ही लख लहई, जउं कहि जाणइ कोई
ज्यूं धणि आखई नयण भरि ज्यूं जइ आखई सोइ
मारू कहती है कि मेरा संदेसा तो पहुंचे लेकिन जवाब में मेरा ढ़ोला मुझे कोई संदेसा न भिजवाए बल्कि खुद ही आ जाये| क्योंकि उसने संदेसे के बदले संदेसा भिजवा दिया तो मैं उस संदेसे को बांच ही नहीं पाऊँगी क्योंकि बिरहा ने मेरी उँगलियों को गला दिया है और मेरी आंखों में इतने आँसू हैं कि मुझे कुछ भी दिखाई ही नहीं देता|
संदेसा मत मोकलउ प्रीतम तू आवेस
आंगुलड़ी ही गलि गयां नयण न वांचण देस
मारू वीछोड़े के कारण अपने सपनों से भी बहुत नाराज है वो कहती है कि वो अपने सपनों के दिलों में छेद करवाकर उन्हें खत्म करवा देगी क्योंकि उसके सपने आँखें बंद करने के बाद भी उसे अकेला रहने नहीं देते और उसके ढ़ोला को उसके पास ले आते हैं और जब वो उन सपनों पर भरोसा करके आंखें खोलती है तो वो खुद को अकेली ही पाती है|
सुहिणा तोहि मराविसूं हियइ दिराऊं छेक
जद सोऊं तद दोइ जण जद जागूं तद ऐक
मारू ढ़ोला को लोभी होने का उलाहना देकर कहती है कि अब तो घर लौट आओ .............
लोभी ठाकुर आवि घर
आवि घर S S S S
आवि घर S S S S
कांई कराइ विदेस
आवि घर
आवि घर S S S S “
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