हम प्रगति कर रहे हैं
सदियों पुरानी अँधेरी दुनिया के,
अँधेरे को ललकार रहे हैं
अँधेरे में डूबे लोग
अँधेरे मिटाने में लगे हैं
यह सदी है रौशनी के आधिक्य की,
उजाला इतना ज्यादा है
आँखों में इतना चमकता है
कि आँखें चौंधिया गयी हैं
कुछ सूझता ही नहीं
इस उजाले के अंधेपन से
कोई जूझता भी नहीं
ये उजाले के मायाजाल में
कौन है जो हमें लूट रहा है
अभी तनकर खड़े भी न हुये
अभी से नींव में क्या टूट रहा है
उजालों में परछाईं बन हर रोज बिखर रहे हैं
हाँ, हम प्रगति कर रहे हैं
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