सोमवार, 24 नवंबर 2014

मुझे मिलना है उससे

मुझे मिलना है उससे
मुझे मिलना है उससे
जो सुन लेता है हमेशा मेरी पदचाप
सुनता है मेरी बातें तब भी
जब मैं होता हूँ चुपचाप 


जो अँधेरे में भी पहचानता है मेरा चेहरा
जो मेरी हलकी सी आहट पर,
मेरे माथे पर पड़ी पसीने की बूँद
को देख कर कहता है
कि थोड़ा आराम कर लो|

वो जो तब भी साथ होता है
जब परछाई भी नहीं होती है
वो जो हर आने वाली सुबह
धीरे से कहता है
कि चलो, सफ़र पर निकलना है
अब कर लिया आराम,
नया पथ तलाशना है

वो जो कहीं मेरे अन्दर बैठा
मुझे निर्देशित करता है
वो जो हर दुविधा का कोई
हल निकाल सकता है
वो आखिर कहाँ छुपा है
मुझे मिलना है उससे

शनिवार, 22 नवंबर 2014

तुम वो कविता हो

तुम वो कविता हो
जिसे मैं कहना ही नहीं चाहता
क्यूंकि नहीं चाहता मैं
कि तुम्हें पढ़ा जाये
नहीं, तुम पढ़ने के लिये नहीं
महसूस करने के लिये हो
तुम वो कविता हो जो
कभी लिखी नहीं जायेगी
और न ही कभी पढ़ी जायेगी
वो कविता जो जियेगी मेरे साथ
और साथ में ही चली जायेगी

सोमवार, 17 नवंबर 2014

इनकी कविता में आग है


कुछ वरिष्ठ कवि मित्र जब किसी नवोदित कवि के बारे में कहते हैं कि फलाँ की कविता में आग है तो तुरन्त समझ में आ जाता है कि फलाँ ने कैसी कवितायें लिखी होंगी|

आग वाली कविताओं में ये वाक्य अवश्य मिलेंगे -
"तुमने लूट लिये हमारे जल जंगल और जमीन"
"हम पर गरजती हैं सरकारी बंदूकें "
"तुमने किये हमारी औरतों के बलात्कार"
"आदिवासी औरतों की पसरी लाशें"

और "सोनी सोरी .................."

हर आग वाले कवि की कविता में सोनी सोरी की आपबीती का चित्रात्मक वर्णन सुनकर लगता है कि उसकी कविता को भी आग लगा दूँ| सिर्फ नाम लेना ही काफी नहीं है इनके लिये, पूरा चित्रण करते हैं | या तो इनको अभिधा, लक्षणा, व्यंजना की समझ नहीं है या ये पाठक को मूर्ख समझते हैं| जितना बुरा सोनी सोरी के साथ हुआ उसका विरोध तगड़ा होना चाहिये| दोषियों को कठोर सजायें मिलनी चाहिये| पर आप उसकी पीड़ा को अपनी कविता सजाने हेतु प्रोडक्ट मत बनाइये| सहानुभूति रखना, उसके लिये संघर्ष करना और पीड़ा का बाजार बनाना अलग बातें हैं| कृपया उनमें अंतर रखिये|

भगवान् बचाये ऐसी आग से, ऐसी कविता का जला चुटकुले भी फूंक फूंक कर पढ़ता है|

बुधवार, 12 नवंबर 2014

मैं तुम्हें पुकारता हूँ

कभी अपनी मुस्कुराहट के बीच,
कभी आँसुओं के साये में
मैं तुम्हें पुकारता हूँ

वो पुकार कभी गुम हो जाती है
कभी तुम तक पहुँच जाती है
कभी गूँजती है मैदानों में
कभी टकराकर लौट आती है 


तुम आओ या न आओ
काफ़ी है बस ये एहसास
कि मैंने तुम्हें पुकार लिया
अपने हर दुःख में
और शामिल किया हर सुख में

ये पुकार एक तसल्ली है
झूठी ही सही पर
इसके होने से
तुम्हारे न होने का
खालीपन कम होता है

रविवार, 9 नवंबर 2014

किस ऑफ़ लव


१- मैं सार्वजनिक चुम्बन का विरोध नहीं कर रहा और इसे अश्लील नहीं मानता|
२- नितांत व्यक्तिगत भावों और क्रियाओं का राजनीतिक इस्तेमाल एक गलत शुरुआत है|
३- इस अभियान से मुझे कोई ख़ुशी या दुःख नहीं है पर जब विरोध करने वाले ये कह रहे हैं कि अपने घर से शुरू करो, अपनी माँ बहन को ले जाओ तो फिर ऐसा लग रहा है कि ऐसे अभियान हर गली मोहल्ले में चलें| बदतमीजी की भी हद होती है कोई| जो भी वहाँ गये हैं, अपनी मर्जी से गये हैं| उनमें से अधिकांश किसी न किसी की माँ बहन हैं|
४- विरोध करने वाले ये नहीं कह रहे कि अपने बाप भाई को ले जाओ पर माँ बहन तक जरुर पहुँच रहे हैं| इससे उस संस्कृति की महानता समझ में आ रही है जिसे ये बचा रहे हैं|


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देख भाई, मुझे तो 'किस ऑफ़ लव' से कोई आपत्ति नहीं है|
पर भाई, मुझे तब बहुत आपत्ति है जब तू कहता है कि सिर्फ प्रेमिका को ही ले के जा रहे हैं लोग| अपनी माँ बहनों को क्यों नहीं ले जा रहे|
तो भाई ऐसा है कि तुम्हें लगता है कि 'किस ऑफ़ लव' वाले अश्लीलता कर रहे हैं पर मुझे तो सबसे बड़े अश्लील तुम लगते हो| हर बात में माँ और बहन को शामिल करने वाले कूढमगज, जो वहाँ प्रदर्शन में शामिल हैं उनमें से अधिकांश किसी न किसी की माँ और बहन ही हैं| और ऐसा बोलकर तुम उनको नीचा नहीं दिखा रहे हो बल्कि हर बात में माँ-बहन करने वाली अपनी मानसिकता का परिचय दे रहे हो|
देख भाई, चुम्बन तो प्रतीक है प्रेम का, स्नेह का| चाहे वो प्रेमी प्रेमिका में हो, चाहे दो मित्रों में हो, चाहे माँ बेटे में हो, चाहे पिता पुत्र में हो तुमको आपत्ति नहीं होनी चाहिये| सार्वजनिक स्थान पर चुम्बन लेना अश्लीलता नहीं है|
और भाई, पानी को एक स्थान पर रोक देने से सड़न पैदा होती है| सामाजिक व्यवहार के लिये भी ये बात सत्य है|
और सबसे बड़ी बात ये है भाई, कि ये भारत है| इसे तू तालिबान बनाये ये संभव नहीं है| तुम्हारे लिये एक शेर -
" आये हैं समझाने लोग
हैं कितने दीवाने लोग "

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देख भाई,
जब तू टुच्ची टुच्ची बातों पर विरोध कर रहा था, औरतों को डायन बता रहा था, उन पर घूँघट और बुर्के लाद रहा था, छूत अछूत डिफ़ाइन कर रहा था तब इसी धरती पर कुछ देशों के लोग पोलियो और मलेरिया की दवायें खोजने में व्यस्त थे, चाँद और मंगल पर यान भेजने में व्यस्त थे, मशीनें और कल पुर्जे बनाने में व्यस्त थे|
और भाई तू रोता है कि अब हम विश्व गुरु नहीं रहे 
//अब भी वक्त है