सोमवार, 17 नवंबर 2014

इनकी कविता में आग है


कुछ वरिष्ठ कवि मित्र जब किसी नवोदित कवि के बारे में कहते हैं कि फलाँ की कविता में आग है तो तुरन्त समझ में आ जाता है कि फलाँ ने कैसी कवितायें लिखी होंगी|

आग वाली कविताओं में ये वाक्य अवश्य मिलेंगे -
"तुमने लूट लिये हमारे जल जंगल और जमीन"
"हम पर गरजती हैं सरकारी बंदूकें "
"तुमने किये हमारी औरतों के बलात्कार"
"आदिवासी औरतों की पसरी लाशें"

और "सोनी सोरी .................."

हर आग वाले कवि की कविता में सोनी सोरी की आपबीती का चित्रात्मक वर्णन सुनकर लगता है कि उसकी कविता को भी आग लगा दूँ| सिर्फ नाम लेना ही काफी नहीं है इनके लिये, पूरा चित्रण करते हैं | या तो इनको अभिधा, लक्षणा, व्यंजना की समझ नहीं है या ये पाठक को मूर्ख समझते हैं| जितना बुरा सोनी सोरी के साथ हुआ उसका विरोध तगड़ा होना चाहिये| दोषियों को कठोर सजायें मिलनी चाहिये| पर आप उसकी पीड़ा को अपनी कविता सजाने हेतु प्रोडक्ट मत बनाइये| सहानुभूति रखना, उसके लिये संघर्ष करना और पीड़ा का बाजार बनाना अलग बातें हैं| कृपया उनमें अंतर रखिये|

भगवान् बचाये ऐसी आग से, ऐसी कविता का जला चुटकुले भी फूंक फूंक कर पढ़ता है|

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