विमर्श
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प्रेमचन्द साहित्य
शनिवार, 20 जून 2015
बहाव
तुम सुनते रहे, मैं कहता रहा
तुम रोकते रहे, मैं बहता रहा
पर जब बहाव बढ़ता गया
तो तुम भी क्यूँ न बह गये,
आखिर तुम किनारे ही क्यूँ रह गये ??
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