शानदार फ़िल्म। बालमन का बेहतरीन चित्रण। आशावाद और निराशावाद का द्वन्द, भय और साहस का द्वन्द
समाज से दूर एक टापू पर प्राकृतिक अवस्थाओं में रहते हुये कैसे हमारा जंगलीपन और आदिम युग का मानव वापस आता है ये फ़िल्म उसका बहुत ही सुंदरता से वर्णन करती है।
बच्चों का एक ग्रुप
जो कि हवाई दुर्घटना में एक समुद्री टापू पर फँस जाता है और उसके बाद
उसमें हिंसा निराशा बर्बरता आदि बढ़ती हैं।
बच्चों के दो ग्रुप हो जाते हैं एक को लगता है कि उन्हें कोई नहीं बचायेगा अब ये जंगल ही उनका घर है। दूसरा ग्रुप इस उम्मीद में रहता है कि कभी कोई जहाज उनकी मदद को आ जायेगा। दूसरे ग्रुप की संख्या धीरे धीरे कम होती है और पहले ग्रुप की बढ़ती जाती है। पहला ग्रुप मानता है कि हम जंगल में हैं तो शहरियों की तरह रहना बेवकूफी है, हमें जंगलियों की ही तरह रहना चाहिये।
अंत बहुत सुन्दर बन पड़ा है।
बच्चों के दो ग्रुप हो जाते हैं एक को लगता है कि उन्हें कोई नहीं बचायेगा अब ये जंगल ही उनका घर है। दूसरा ग्रुप इस उम्मीद में रहता है कि कभी कोई जहाज उनकी मदद को आ जायेगा। दूसरे ग्रुप की संख्या धीरे धीरे कम होती है और पहले ग्रुप की बढ़ती जाती है। पहला ग्रुप मानता है कि हम जंगल में हैं तो शहरियों की तरह रहना बेवकूफी है, हमें जंगलियों की ही तरह रहना चाहिये।
अंत बहुत सुन्दर बन पड़ा है।
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